इस वर्ष की ये आखरी रचना तेरे लिए वो पेड़ आओ तुम्हे अपनी यादों में ले चलता हूँ बैठे थे उस पेड़ के निचे कभी हम दोनों उस पेड़ के निचे फिर बैठने ले चलता हूँ थोड़ा हंसायेंगी वो थोड़ा रुलायेंगी बैठे बैठे हम दोनों को वो अपनी यादें अपने आप से वो फिर से मिलायेंगी आ जाओ बाहों में फिर से उन राहों में जो पीछे छूट गई यादें उन निगाहों में अब भी संजोकर बैठी ह…
Read moreमेरे गाँव में बर्फ गिरी है मेरे गाँव में बर्फ गिरी है सफेद चादर धरती पर बिछी है उच्च हिमालयी क्षेत्र है मेरा बुरा असर है वो हर ओर बिछी है धूप-छांव का खेल है जीवन बूंदाबांदी और वो पल बदल रही है करवट लेता हूँ वो अकड़ रही है दायरे को और मेरे अब सिमटा रही है दूर से वो बहुत खूबसूरत लग रही है मिलते ही वो मुझ से बिछड़ रही है लकदक हुए वो मेरे …
Read moreकभी लगता है ऐसे कभी लगता है ऐसे कोई ढूंढे मुझे भी पढ़कर कभी कोई (कोई खोजे मुझे भी )... २ (कभी लगता है ऐसे ) ... २ बिखरा पड़ा हूँ उलझा पड़ा हूँ राहों में अकेला पन्नों जैसा उड़ता पड़ा हूँ (कभी आये कोई तो )... २ (कभी लगता है ऐसे ) ... २ मेरा ही घर है मुझ से जुदा है मेरा ही वजूद है . खुद रूठा पड़ा है (कभी कोई मनाये कभी तो )... २ (कभी लगता…
Read moreआभास अर्जन करता रहा ये मन उज्ज्वल कल के लिए उपयुक्त था ऐसा करना मेरा क्या आने वाले पल के लिए निर्माण सदैव करता रहा एक दिन निर्वाण होने के लिये कंगाल अब होने लगा हूँ अब कंकाल होने के लिए आदि काल जो गया वो गया आदी होके जीने के लिए बालिका तरुणी हो गयी तरणि लहरों के वेग के लिए देव अब बन सकता नहीं दैव में ऐसा लिखा हुआ आवास सदैव साथ…
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