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बैठने दो



बैठने दो

बैठने दो
दो घड़ी अपने पास
इतना हक दो कि
बस पूछ सकूं
तुम क्यों हो उदास ?

जो कुछ है  
वो क्षणिक है
आया गुजर जाएगा
बहने दो उसे
बस अपने निशान
वो छोड़ जाएगा

रोक सकता नहीं
बस पूछ सकता हूँ
नन्ही कलियाँ तोड़
तुम्हारे बलों में
क्या मैं सजा सकता हूँ

प्यार यही है
मुस्कुराती रहो सदा
धूप आशाओं की
बनकर आँगन मेरा
यूँ ही खिल खिलाती  रहो सदा

बैठने दो

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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