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वो पेड़


इस वर्ष की ये आखरी रचना तेरे लिए

वो पेड़

आओ तुम्हे अपनी यादों में ले चलता हूँ
बैठे थे उस पेड़ के निचे कभी हम दोनों
उस पेड़ के निचे फिर बैठने ले चलता हूँ

थोड़ा हंसायेंगी वो थोड़ा रुलायेंगी
बैठे बैठे हम दोनों को वो अपनी यादें
अपने आप से वो फिर से मिलायेंगी

आ जाओ बाहों में फिर से उन राहों में
जो पीछे छूट गई यादें उन निगाहों में
अब भी संजोकर बैठी है चलो देखने चलें

मेरा सारा हिस्सा वो किस्सा भी तू ले ले
मगर अपने सारे दुःख ग़म मुझे तू दे दे
एक ऐ वाद तू फिर से कर ले

अपनी यादों के अँधेरे तू मुझे दे दे
मेरी यादों के उजाले तू ले ले
बस एक बार फिर से उसी पेड़ तले आजा

वो पेड़

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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