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रात भर




रात भर

गिरता रहा अश्क बन
उनके सिरहाने मैं रात भर

मान जाती वो अगर
उनको  मनाता मैं रात भर

खटखटाते रहे निरंतर
द्वार ना खुला उसने रात भर

मैं तो उनका हो चुका हूँ
उनको शक रहा रात भर

रात भी बैठी रही संग मेरे
उनका इंतजार रहा रात भर

नाकाम अधूरी ही रही
वो कहानी मेरी रात भर

चलो उनको सकून आया
देख यूँ तड़पना मेरा रात भर

मेर खाव्बों को यूँ जगा
वो चैन से सोते रहे रात भर

सुबह को भी तुम  दोष देना
बिखरा जो समेटा ना सका रात भर

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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