Advertisement

बातें की थी


बातें  की थी

बातें  की थी
उसने बहुत
चुप रह कर
मैंने भी
सब सुनी वो बातें
चुप रह कर

वजह
कुछ नहीं थी
लफ्ज़ खमोश
शब्दों में उखड़ी पड़ी थी
बस हम से
हमारी तन्हाई थी

दस्तावेज़
दिखना फिजूल था
विवरण तो  बस
नजरें बयाँ कर रही थी
उस पर ही तो
मेरा यकीन था

तथ्य मेरा
यही था पास मेरे
अब खुला पड़ा हुआ
वो नयन  तेरे
पढ़ लेना
चुपके से

बातें  की ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

Post a Comment

0 Comments