बातें की थी
बातें की थी
उसने बहुत
चुप रह कर
मैंने भी
सब सुनी वो बातें
चुप रह कर
वजह
कुछ नहीं थी
लफ्ज़ खमोश
शब्दों में उखड़ी पड़ी थी
बस हम से
हमारी तन्हाई थी
दस्तावेज़
दिखना फिजूल था
विवरण तो बस
नजरें बयाँ कर रही थी
उस पर ही तो
मेरा यकीन था
तथ्य मेरा
यही था पास मेरे
अब खुला पड़ा हुआ
वो नयन तेरे
पढ़ लेना
चुपके से
बातें की ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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