क्या बोलते हैं
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
सुन लो ना मेरे यार
क्या बोलते हैं
कुछ अलग लिखने चला
हूँ मैं आज
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
रचा जिसने इन्हे धरा पर
उसे नित मेरा प्रणाम
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
ऊँचा हुआ वो हिस्सा
बरसों का वो किस्सा
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
मन बस जाते हैं
रह रहकर याद आते हैं
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
मेरा विश्वास है तू
तू ही मेरी आस है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
शब्द झूठ नहीं बोलते कभी
तू ही शरीर तू ही मेरा प्राण है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
सच को सच कहने के लिए
खड़े रहते हैं वो , वो ही मेरा पहाड़ है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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