बस यादें दे गई जिंदगी
जिंदगी ने खेल ऐसा खेला
बस हार ही हार मिली
ना शिकवा रहा अब किसी से
ना गिला करने कोई मिला
गलत ना समझना तुम मुझको
मैंने भी बहुत प्यारा किया तुमको
दांव बिछा कर ऐसा खेल,खेल गई
अब उम्र भर अकेले रह गई जिंदगी
झूठी हंसी का हुनर अब वो
हमे भी खूब समझा गई जिंदगी
मरहम की कसम मरहम न मिला
उस दर्द से हमे मार गई जिंदगी
जब अब हार ने के लिये
ना बचा कुछ भी पास मेरे
तड़पा कर फिर मुझे मारने लिए
यादें उसकी पास छोड़ गई जिंदगी
वो ख़ुद बुलायेगा मुझे
बस मेरा वक़्त तो आने दो
इसी उम्मीद के छलावे देकर
पूरी उम्र मुझे छला गई जिंदगी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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