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मंजिलों की तलाश में


मंजिलों  की तलाश में

मंजिलों  की तलाश में
जब निकला था  मै तेरे पास से
तब कुछ न था मेरे हात में
तब  तू  ही तू  था मेरे साथ में

न जमीन थी
न वो आसमान  था
बाहर निकले  ना समझ कदम
बस  सपनों का वो जहाँ  था

चलता रहा  मीलों मै
बस आस में भूखा-प्यासा में
घूमा  रहा था दर बदर
बस उम्मीदों की तलाश में

मुकाम बनाना चाहता था
तारों सा चमकना चाहता था
आंखों में तेरे अपने को
मैं इस तरह बसाना चाहता था

जब सब कुछ है पर अब तू नहीं
शिखर पर अकेला खड़ा हूँ मैं यूँ ही
जब तलाश मेरी यूँ खत्म हुई
तेरे संग मेरी क्यों हुई दुरी

मंजिलों  की तलाश में......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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