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बात बताऊं क्या तुम्हे


बात बताऊं क्या तुम्हे

बात बताऊं क्या तुम्हे
मेरे मिटटी के गांव  की
सनी रहती थी धूल
कभी हर वक्त मेरे पाँव में

वो पीपल वो चूल्हा
वो लकड़ी वो जंगल
मंदिर घंटे  सब बजते
बस अब  मन अंदर

शाम सुहानी फिर गाने आयी
अकेला देख मुझे बहलाने आयी
सूरज किरणों को ले अब सिमटेगा

मेरे पहाड़ के पीछे वो जब गुजरेगा

चन्दा मामा देख अब आता होगा
दीवानी रात को साथ लाता होगा
दूर से हवा धूल मुझे उड़ाती  होगी
चरवाहे गायों, मां बाट निहरति  होगी

आज खूब प्रदूषित हो गया हूँ  मैं
इस शहर में जाने कहाँ खो गया हूँ  मैं
वो मिटटी घर अब भी शीतलता दिलाता है
दूर है मुझ से वो , वो मुझे अब भी बुलाता है

बात बताऊं क्या तुम्हे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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http://www.merapahadforum.com/
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