वो ख़ुशी
बिखरे पड़े हैं समेट लो
जितना समेटना चाहते हो
उतना लपेट लो
मन की आंखें खोलो जरा
जैसे देखना उसे देख लो
पास तुम्हारे हैं ,वो साथ तुम्हारे हैं
बिखरे पड़े हैं समेट लो
बस महसूस ना करो
जी लो उन संग
जो नजरें कितने प्यारे हैं
उतना ही काफी है
बिखरे पड़े हैं समेट लो
आँखों में उतार लो
साँसों में उसे संवार लो
इन हातों लेकर हात तुम
बस जिंदगी गुजार लो
बिखरे पड़े हैं समेट लो
दिल में वो उतर जायेगी
वो तेरे साथ चली आएगी
जो अब तक अकेली थी
उसे भी साथी मिल जाएगा
बिखरे पड़े हैं समेट लो
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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