अपने से
अभी शांत नहीं बस मौन हूँ
पूछता हूँ अपने से कौन हूँ
सुलगाने दो जलेंगे देर तक
बुझती आग हूँ अभी शांत नहीं
तपिश है बस निराशा नहीं
मांगता हूँ हक़ हताश नहीं
मोम ने बस दरारें भरी
आंखें बंद है सोया नहीं
अभी कोई मेरा पता नहीं
ढूंढता हूँ खुद से खफा नहीं
ऐ तन्हाई मेरी अनमोल है
सुकून है मुझे तुम्हे संकोच है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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