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काफल टिपकर



काफल टिपकर

चांद तारे तो तोड़कर
इतनी दूर से तो मैं  नहीं ला सकता
अपने पहाडों से  काफल टिपकर
इस बार ऐ  पहाड़ी  तुम्हे  जरूर खिला सकता
चांद तारे तो तोड़कर .......

नारंगी बैगनी  हरे  रंग की
बस एक झुरमुट  हो तुम
दिल में यूँ ही सदैव रहोगी तुम
तुमसे जो हमे इतनी उल्फत है
चांद तारे तो तोड़कर .......

गोल रसीली खटि- मीठी सी
ललचाते पुकार रही है आ जाओ मुझे टिप्ने को
'काफल' हूँ बचा लीजिए मुझे
मैं  तो  उत्तराखंड का ही फल हूँ
चांद तारे तो तोड़कर .......

जितने खूबसूरत यहां के मेरे पहाड़ हैं
उतनी ही खूबसूरत मेरे पहाड़ की संस्कृति है
यहां इन दिनों फिर काफल की बहार आई हुई है
चलो हम चलें उन्हें मिलकर चुनने को
चांद तारे तो तोड़कर .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
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