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भिगो देती हैं .......




भिगो देती हैं .......

भिगो देती हैं
वो प्रेम की बौछारें  तेरी
इस कदर..हमे इस कदर

पन्ने भी तेरे  ऐ सोच भी तेरी
किताबें भी खुद ही खुद हो गई अब तेरी
इस कदर..इस कदर

सुना है इस  दुनिया से
यूं असर डाला है तुम ने  मैं रहा ना किधर
इस कदर..इस कदर
भिगो देती हैं .......

बहुत आसान है अब पहचान उसकी
उसने काह हम इंसान हैं किताब नही
इस कदर..इस कदर

वो कहानी थी, चलती रही,
ऐ किस्सा था, खत्म हुआ ही गया
इस कदर..इस कदर

अकेले में अकेले से यूँ ही लगा रहा
अकेल ही उनको अपना बताता  रहा
इस कदर..इस कदर
भिगो देती हैं .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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