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तेरी एक मुस्कान ही



तेरी एक मुस्कान ही

यूँ तो किसी के भी संग
बैठकर दो पल
हँसना-बोलना
बचाना अच्छा लगता है
यूँ तो ....

अकेले हैं आए भी अकेले
जाना भी  अकेले  है
तो क्यों कर के  अखरता है
ऐ अकेलापन
यूँ तो ....

खुशियों के संग जिंदगी के रंग
धरती पर बिखरें यंहा वंहा
सवाल है ऐ एकाकीपन
क्यों  ना पाता वो निर्जनता पार
यूँ तो ....

चिर देती है
तेरी रुसवाई ऐ  सीना
गले आकार जब तेरी  मायूसी,
मुझ से गले मिलती  है
यूँ तो ....

यूँ तो शिकायतें हैं
तुझ से सैंकड़ों मगर
तेरी एक मुस्कान ही
काफी है मेरे जीने के लिए
यूँ तो ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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